*गब्बर* : "अरे ओ सांभा ! कितने जैन बचे है रे अब भारत में ?"
*सांभा* : "केवल ४५ लाख, सरदार!"
*गब्बर* : "सिर्फ ४५ लाख !!"
*सांभा* : "हां सरदार, और अगले पच्चीस सालो में तो एक भी जैन नही बचेगा!"
*गब्बर* : "कौन मारेगा उन्हे ?"
*सांभा* : "उन्हे कोई मारेगा नहीं सरदार! वो सब तो आपसी झगड़ो, आडम्बर और दिखावे में स्वतः ही खत्म हो जायेंगे!"
*गब्बर* : "वह कैसे ?"
*सांभा* : "ये जैन लोग आपस में ही तीर्थ, पंथ, संत, संघ, संस्था और सम्प्रदायवाद के नाम से झगड रहे हैं तथा इन्होने तो अपने धर्म और मंदिरो-स्थानको के दरवाजे भी एक दूसरे के लिये बंद कर दिये हैं!
और हर उम्र के जैन बच्चे, युवा, महिला, पुरूष सभी सिर्फ दूसरो को अपना पैसा दिखाने में ही लगे हुए हैं। ये अनावश्यक आडम्बर, दिखावा तथा फिजूल खर्चा कर रहे हैं जिससे ये लोग खत्म ही हो जायेंगे ना सरदार!"
*गब्बर* : "ऐसी बात हैं क्या! अरे, मैं तो इस जैन अनुयायियों को बहुत समझदार, धर्मिनिष्ठ, अनुशासित और सेवाभावी मानता था!"
*सांभा* : "ये जैन लोग भी अपने आप को दूसरों से ज्यादा ही समझदार, होशियार, धनवान, सेवाभावी, दानवीर, पुण्यशाली, भाग्यशाली व धार्मिक मानते हैं, लेकिन वास्तव में हैं नहीं !
सिर्फ दिखावा ही दिखावा है सरदार!"
*निष्कर्ष-*
हम सुधर जाएँ...
इससे पहले कि
हम लुप्त ही हो जाए!
🙏 जय जिनैन्द्र कृपया इस मैसेज को केवल जैन बन्धुओं एवं जैन ग्रुप me hi bheje
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