(हर घर में खुशियों का दीप जलता है, लेकिन जब आपसी समझ और सहयोग की लौ मंद पड़ने लगती है, तो *गृहक्लेश* जन्म लेता है। कोई भी रिश्ता परफेक्ट नहीं होता, लेकिन आपसी सम्मान और धैर्य ही घर को स्वर्ग बना सकते हैं। )
संत कबीर अपने सत्संग में जीवन की गहरी सच्चाइयों को सरल उदाहरणों से समझाने के लिए प्रसिद्ध थे।
एक दिन सत्संग समाप्त होने के बाद एक व्यक्ति वहीं बैठा रहा।
कबीर ने उससे पूछा, "क्या बात है, कुछ पूछना चाहते हो?"
उस व्यक्ति ने कहा, "मैं गृहस्थ हूं और घर में आए दिन झगड़े होते रहते हैं। मैं जानना चाहता हूं कि मेरे घर में गृहक्लेश क्यों होता है और इसे कैसे दूर किया जा सकता है?"
कबीर कुछ देर चुप रहे और फिर अपनी पत्नी से बोले, "लालटेन जलाकर लाओ!"
पत्नी ने बिना कुछ कहे लालटेन लाकर रख दी। वह व्यक्ति सोच में पड़ गया—"दोपहर में जलती धूप में लालटेन की क्या जरूरत?"
फिर थोड़ी देर बाद कबीर ने पत्नी से कहा, "कुछ मीठा दे जाना।"
पत्नी मीठे के बजाय नमकीन देकर चली गई। इस पर कबीर ने भी कुछ नहीं कहा।
पति पत्नि दोनो का अजीब व्यवहार देखकर वह व्यक्ति अब पूरी तरह से उलझन में पड़ चुका था। उसने वहाँ से जाने में ही उचित समझा ।
उसने जाने की इच्छा जताई, तो कबीर ने पूछा, "क्या तुम्हें अपने सवाल का जवाब मिला?"
वह बोला, "नहीं, मेरी समझ में कुछ नहीं आया।"
कबीर मुस्कुराए और समझाने लगे—
" देखो, तुम्हारे सामने जब मैंने लालटेन मंगवाई, तो मेरी पत्नी कह सकती थी, पूछ सकती थी कि 'इतनी दोपहर में लालटेन का क्या काम?' लेकिन उसने बिना सवाल किए लालटेन लाकर दे दिया। जब मैंने मीठा मंगवाया और पत्नी ने नमकीन लाकर दिया, तो मैंने झगड़ा नहीं किया, मैने पूछा भी नहीं । क्योंकि संभव था कि घर में मीठा उपलब्ध न हो।
तुम्हारे प्रश्न का उतर इसी में छुपा है कि अगर हर रिश्ते में ऐसा धैर्य और समझदारी हो, तो विवाद की नौबत ही नहीं आएगी। गृहस्थी तभी सुखमय होती है, *जब एक व्यक्ति की गलती को दूसरा नजरअंदाज कर सके और दोनों मिलकर रिश्ते को मजबूत बनाएं।"*
वह व्यक्ति अब अपनी समस्या का समाधान समझ चुका था।
*सीख* : दोस्तों, गृहस्थ जीवन में सबसे महत्वपूर्ण तत्व आपसी विश्वास, संयम और समझ है। *जब परिवार के सदस्य एक-दूसरे की कमियों को नज़रअंदाज़ कर सकारात्मकता अपनाते हैं, तो घर स्वर्ग बन जाता है।* लेकिन यदि अहंकार, जिद और अविश्वास हावी हो जाए, तो वही घर नरक में बदल जाता है। इसलिए, संवाद बनाए रखें, थोड़ा झुकना सीखें और रिश्तों में प्यार और समर्पण का दीप जलाए रखें।
" *गुफ्तगू करते रहिए,*
*थोड़ी-थोड़ी अपने चाहने वालों से…*
*‘जाले’ लग जाते हैं,*
*अक्सर बंद मकानों में......
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