स्वयं के जीवन में जैन धर्म का महत्त्व

·       परस्परोपग्रहो जीवानाम् तत्त्वार्थ सूत्र के सूत्र में कहा है कि प्रत्येक जीव को परस्पर एक दूसरे पर उपकार सहयोग करना चाहिये ।

·       दाणं पूया मोक्खं अर्थात् व्यक्ति के जीवन में दो चीजों का बहुत महत्त्व है दान और पूजा का । दान से व्यक्ति का धन के प्रति आसक्ति कम होती है । और पूज्य पुरुषों की पूजा से उनके जैसे बनने की प्रेरणा मिलती है ।
·       मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम् ।
ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये ।।
स्वयं के जीवन को सर्वोच्च बनाने के लिये, उनके जैसे गुण हमें भी प्राप्त हों इसके लिए ही हमारे जैन शास्त्रों में तीर्थंकरों को नमन बताया है ।
·       जैन शास्त्रानुसार रात्रि भोजन का त्याग और पानी छान कर पीना चाहिये । आजकल प्रत्येक डाक्टर्स की यही सलाह होती है कि खाना में और सोने में कम से कम चार घण्टे का अन्तर होना चाहिये । जो कि सूर्यास्त के पहले भोजन करने से ही सम्भव है ।
·       जैन धर्म के अनुसार जीवन जीने वाला व्यक्ति कभी किसी की संकल्पी हिंसा नहीं करता है । कभी झूठ नहीं बोलता
·       जीवन को बर्बाद करने वाले शराब पीना, मांस खाना, जुआ खेलना आदि सात व्यसनों को एक अच्छा जैनी सर्वप्रथम त्याग करता है । 
·        यदि किसी के प्रति अपराध हुआ तो प्रतिक्रमण करके एक अच्छा जैन क्षमा याचना कर लेता है ।

·       क्रोध मान माया और लोभ को छोडकर संयम, तप, एवं त्याग पूर्वक जीवन जीने की कला यह दशलक्षण पर्व ही सीखाते हैं ।
परिग्रह परिमाण व्रत लेकर संतोषी जीवन जीने की कला जैन धर्म ही सीखाता है ।
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Milan Tomic

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