जैन दर्शन के पाँच समवाय

 *पाँच समवाय की जैन दर्शन एवं पाश्चात्य दर्शनों के सन्दर्भ में तुलनात्मक दार्शनिक मीमांसा* 


जैन दर्शन के पाँच समवाय (Samavāya)—स्वभाव (Swabhava), नियति (Niyati), काललब्धि (Kala Labdhi), पुरुषार्थ (Purushartha), और निमित्त (Nimitta)—के विभिन्न पश्चिमी दर्शन में समानताएँ या पूरक विचार मिलते हैं। उदाहरणतः 



1. स्वभाव (Swabhava - Intrinsic Nature)


पश्चिमी समानताएँ:


* अरस्तू का एसेंशियलिज़्म (Aristotelian Essentialism):

अरस्तू ने यह विचार प्रस्तुत किया कि हर वस्तु का एक आंतरिक स्वभाव या "मूल स्वरूप (substantial form)" होता है, जो उसके उद्देश्य और कार्य (telos) को परिभाषित करता है। यह जैन दर्शन के स्वभाव से मेल खाता है, जिसमें पदार्थ अपने अंतर्निहित गुणों के अनुसार कार्य करते हैं।


उदाहरण: बीज का पेड़ में परिवर्तित होना उसके स्वभाव को दर्शाता है।



* स्पिनोज़ा का सब्सटेंस मोनिज़्म (Spinoza's Substance Monism):

स्पिनोज़ा ने सभी चीजों को एकल पदार्थ (ईश्वर या प्रकृति) का हिस्सा बताया, जिसमें प्रत्येक भाग अपने स्वाभाविक गुण रखता है।


पूरक विचार:

दोनों परंपराएँ मानती हैं कि आंतरिक स्वभाव किसी भी वस्तु के व्यवहार और विशेषताओं को नियंत्रित करता है।


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2. नियति (Niyati - Destiny or Determinism)


पश्चिमी समानताएँ:


* स्टोइक दर्शन (Stoicism):

स्टोइक दर्शन लोगोस (logos) या ब्रह्मांडीय तर्क से प्रेरित नियतिवाद को स्वीकार करता है। यह जैन दर्शन के नियति विचार से मेल खाता है, जहाँ घटनाएँ प्राकृतिक नियमों के अनुसार होती हैं।


* लीबनिज़ का प्री-स्टेबलिश्ड हार्मनी (Leibniz's Pre-established Harmony):

लीबनिज़ ने कहा कि ब्रह्मांड में हर चीज़ ईश्वर द्वारा पहले से निर्धारित सामंजस्य में कार्य करती है।


* केल्विनवाद (Calvinism - Theological Determinism):

केल्विनवादी दर्शन में यह माना गया कि ईश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित भाग्य मानव जीवन को नियंत्रित करता है।


पूरक विचार:

जैन दर्शन में नियति महत्वपूर्ण है, लेकिन यह पुरुषार्थ (Purushartha) के महत्व को स्वीकार करते हुए मानव प्रयास को स्थान देता है, जो कई पश्चिमी नियतिवादी विचारों में कम है।


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3. काललब्धि (Kala Labdhi - Time Appropriateness)


पश्चिमी समानताएँ:


* हाइडेगर का टेम्पोरालिटी (Heidegger's Temporality):

हाइडेगर ने समय को मानव अस्तित्व का केंद्रीय तत्व माना। उनकी विचारधारा में घटनाएँ विशिष्ट समय पर ही घटित होती हैं, जैसे जैन दर्शन में काललब्धि का महत्व है।


* हेराक्लिटस का फ्लक्स और समय (Heraclitus' Flux and Time):

हेराक्लिटस ने समय को निरंतर प्रवाह के रूप में देखा, जिसमें घटनाएँ अपने समय पर विकसित होती हैं।


* आइंस्टीन का रिलेटिविटी सिद्धांत (Einstein's Theory of Relativity):

यद्यपि यह वैज्ञानिक विचार है, पर यह दर्शाता है कि समय पर्यवेक्षक पर निर्भर करता है। यह जैन दर्शन में समय के परिवर्तनकारी और माध्यमिक पहलू के समान है।


पूरक विचार:

जैन और पश्चिमी दर्शन दोनों समय को महत्वपूर्ण मानते हैं, हालांकि जैन दर्शन इसे आध्यात्मिक और दार्शनिक दृष्टि से देखता है, जबकि पश्चिमी विचार इसका भौतिक और अस्तित्व संबंधी विश्लेषण करता है।


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4. पुरुषार्थ (Purushartha - Human Effort)


पश्चिमी समानताएँ:


* एग्ज़िस्टेंशियलिज़्म (Existentialism - Sartre):

सार्त्र का दर्शन व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जिम्मेदारी पर जोर देता है। जैन दर्शन की तरह यह भी कहता है कि मानव अपने प्रयासों से अपनी नियति को आकार देता है।


उद्धरण: "मनुष्य स्वतंत्र होने के लिए बाध्य है।"


* प्रैग्मेटिज़्म (Pragmatism - William James):

प्रैग्मेटिज़्म सत्य और उद्देश्यों की प्राप्ति में क्रियात्मकता और प्रयास को महत्व देता है, जो जैन दर्शन के पुरुषार्थ से मेल खाता है।


* कांत का नैतिक दर्शन (Kant's Moral Philosophy):

कांत ने मानव स्वायत्तता और नैतिक प्रगति में इच्छाशक्ति की भूमिका को महत्व दिया, जो जैन दर्शन के आत्म-संघर्ष और प्रयास के विचार के समान है।



पूरक विचार:

जैन और पश्चिमी दर्शन दोनों में यह विचार प्रबल है कि व्यक्तिगत प्रयास (पुरुषार्थ) किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति में अनिवार्य है।


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5. निमित्त (Nimitta - External Cause)


पश्चिमी समानताएँ:


* अरस्तू के चार कारण (Aristotle's Four Causes - Efficient Cause):

अरस्तू का "इफिशिएंट कॉज़" (efficient cause) किसी घटना को संभव बनाने वाले बाहरी कारकों को संदर्भित करता है, जो जैन दर्शन के निमित्त के समान है।


* डेविड ह्यूम का कारणता सिद्धांत (David Hume's Theory of Causation):

ह्यूम ने बाहरी कारकों और कारण-प्रभाव के बीच संबंध का विश्लेषण किया।


* व्हाइटहेड का रिलेशनल ओंटोलॉजी (Whitehead's Relational Ontology):

व्हाइटहेड ने प्रक्रियात्मक दर्शन में वस्तुओं को एक-दूसरे से जुड़े रूप में देखा, जहाँ बाहरी संबंध घटनाओं को प्रभावित करते हैं।


पूरक विचार:

जैन दर्शन का निमित्त और पश्चिमी कारणता सिद्धांत बाहरी परिस्थितियों के महत्व को स्वीकार करते हैं, लेकिन जैन दर्शन इसे स्वभाव और पुरुषार्थ से संतुलित करता है।


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संयोजन और व्यापक अंतर्दृष्टि:


1. नियतिवाद और स्वतंत्रता का संतुलन:

जैन दर्शन में नियतिवादी कारक (नियति, स्वभाव) और स्वतंत्रता (पुरुषार्थ) के बीच संतुलन है, जबकि पश्चिमी दर्शन में यह संतुलन कभी-कभी एकतरफा होता है।

2. परस्पर निर्भरता:

जैन और पश्चिमी दर्शन दोनों आंतरिक और बाहरी कारकों की भूमिका को स्वीकार करते हैं, भले ही उनके दार्शनिक ढांचे अलग हों।

3. समय का महत्व:

समय (काललब्धि) को जैन दर्शन में आध्यात्मिक रूप से देखा गया है, जबकि पश्चिमी दर्शन इसे अस्तित्व और भौतिक दृष्टिकोण से समझता है।


यह तुलना जैन और पश्चिमी विचारधाराओं के बीच समानताओं और अंतरों को उजागर करती है, जो जीवन और घटनाओं के गहन विश्लेषण में योगदान करती हैं।


प्रस्तुति –

शोधार्थी संयम जैन, नागपुर/जयपुर

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Milan Tomic

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