*धर्म का मर्म*
*वसंत पंचमी*
*आज से माघ मास वाला दसलक्षण पर्व प्रारंभ होता है*
*आज आचार्य कुंदकुंद देव की जन्म तिथि है*
आज कुछ लोग सरस्वती की आराधना करते है
जगत में विद्या (ज्ञान) और वाणी के देवी को सरस्वती कहते है
यह विद्या और वाणी हमे जिनवाणी से प्राप्त होती है
*इसीलिए जैन धर्म के अनुसार जिनवाणी ही सरस्वती होती है* जिनवाणी का स्वाध्याय ही सरस्वती की आराधना है
*आचार्य कुंदकुंद के जन्म तिथि को जिनवाणी (सरस्वती) की पूजन इसीलिए होती है क्योंकि* उन्होंने पंच परमागम की रचना की थी,
*परमागम अर्थात पूरे जैन आगम शास्त्र (जिनवाणी) के सबसे उत्कृष्ठ आगम शास्त्र (जिनवाणी)* जिनके नाम निम्न अनुसार है
*समयसार*
*नियमसार*
*प्रवचनसार*
*अष्ट पाहुड*
*पंच अस्तिकाय संग्रह*
पंच परमागम की रचना के कारण उन्हें दिगंबर जैन धर्म के सबसे श्रेष्ठ आचार्य माना जाता है और मंगलाचरण में *गणधरो के बाद और जैन धर्म के पहले उन्हे ही मांगलिक कहा है*
मंगलम भगवान वीरो,मंगलम गौतमो गणी ।
*मंगलम कुन्द्कुंदाद्दौ*, जैन धर्मोस्तु मंगलम ॥
*आचार्य कुंदकुंद आम्नाय अर्थात आचार्य कुंदकुंद परंपरा*, भद्रबाहु आचार्य के काल मे १२ साल के अकाल में सभी साधु सफेद वस्त्र धारण कर रहे थे तब आचार्य कुंदकुंद देव ने ही दिगंबर परंपरा को जीवित रखा,
*सभी दिगंबर प्रतिमा के प्रशस्ति में आचार्य कुंदकुंद आम्नाय द्वारा प्रतिष्ठित लिखा होता है*
*मुनि दीक्षा के काल में भी यही प्रतिज्ञा ली जाती है की आचार्य कुंदकुंद आम्नाय के अनुसार दीक्षा का पालन करेंगे*
*शास्त्र स्वाध्याय के पहले कहे जाने वाले मंगलाचरण में भी आचार्य कुंदकुंद आम्नाय के अनुसार शास्त्र कहूंगा ऐसी प्रतिज्ञा लेते है*
*अर्थात देव (जिन प्रतिमा), शास्त्र और गुरु तीनो भी आचार्य कुंदकुंद आम्नाय से ही प्रमाणित होते है*, इतनी महान परंपरा को आचार्य कुंदकुंद आम्नाय कहा जाता है
*पंच परमागम के रचना के कारण आचार्य कुंदकुंद को कलिकाल (पंचम काल) का सर्वज्ञ कहते है*
*उनके बारे में कहा जाता है "न हुए है ना होएंगे मुनि कुंदकुंद से*"
*ऐसे दिगंबर धर्म के महान आचार्य को हमारा त्रिकाल वंदन है*
जय जिनेंद्र
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