आलोचना: एक सकारात्मक दृष्टिकोण*

प्रत्येक सफल व्यक्ति को अपने जीवन में आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। जो लोग कुछ अलग, नया और समाज के हित में कार्य करते हैं, उनके आलोचक भी अधिक हो जाते हैं। परंतु, यह भी शत प्रतिशत बात सही है कि सच्ची सफलता उन्ही लोगों को ही मिलती है, जो आलोचनाओं से विचलित हुए बिना अपने लक्ष्य पर केंद्रित रहते हैं।

आपने सना या पढ़ा होगा अमेरिका के सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को भी अपने विरोधियों की आलोचनाओं का निरंतर सामना करना पड़ता था। जैसा कि अक्सर होता ही है उनके विरोधी बार बार अखबारों में उनके विरुद्ध लेख प्रकाशित करवाते रहते थे। किंतु लिंकन कभी भी इन आलोचनाओं का प्रतिउत्तर नहीं देते थे।

एक दिन उनके एक मित्र ने उनसे कहा, “आपके विरोधी आपके बारे में तरह-तरह की बातें लिखते रहते हैं। आप उनका उत्तर क्यों नहीं देते? आपको भी अपने बचाव में कुछ कहना चाहिए, स्पष्टीकरण देना चाहिये।”

लिंकन मुस्कुराए और धैर्यपूर्वक उत्तर दिया, “मित्र! यदि मैं उनकी आलोचनाओं का उत्तर देने लगूंगा, तो मेरा तो सारा समय इन्हीं बातों में व्यर्थ चला जाएगा। फिर भला मैं जनता के हित में कोई कार्य नहीं कर पाऊंगा।"

"सुनो मित्र, जीवन के अंत में यदि मेरे कार्य मुझे एक बुरा व्यक्ति साबित करते हैं, तो मेरे द्वारा दी गई सफाई का कोई मूल्य नहीं होगा। लेकिन यदि मैं अपने कर्मों से एक अच्छा व्यक्ति साबित होता हूँ, तो फिर इन आलोचनाओं का भी कोई अर्थ नहीं रह जाता। इसलिए मैं इन बातों पर ध्यान दिए बिना चुपचाप अपना काम करता हूँ।”

सीख: हमें आलोचनाओं से विचलित हुए बिना अपने कार्यों पर ध्यान देना चाहिए। समय बर्बाद करने के बजाय, हमें अपने कर्मों को इतना श्रेष्ठ बनाना चाहिए कि वे ही हमारे उत्तर बन जाएं। महानता आलोचनाओं का नहीं, बल्कि कर्मों का परिणाम होती है।

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Milan Tomic

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