लोकोत्तर महापुरुष की महायात्रा का अद्भुत संस्मरण

गुरुजी के निर्लिप्त भाव-*

🕰️ *१२ फरवरी, २०२४*🕰️  प्रातः निस्सीमसागरजी ने बताया कल रात्रि में आचार्यश्री ने तीन बार शौच समाधान किया, ३ बजे रात्रि में प्रतिक्रमण सुनाया, फिर सामायिक की, फिर प्रातः ५ बजे सामायिक पाठ सुनाया, स्वयंभू सुनाया गया। जैसे ही दरवाजा खोला गया तो देखा आचार्य गुरुवर बैठे हुए थे। हम सभी ने नमोऽस्तु किया तो निरीहता से आशीर्वाद दिया और फिर दैनिक कार्य हुए | 

थोड़ी देर बाद ब्र. विनय जी, राजाभाई सूरत एवं उनके साथ दो व्यक्ति आए। राजाभाई बोले आचार्यश्री जी, *केन्द्रीय मंत्री अमित शाहजी ने आपके स्वास्थ्य के समाचार जानकर चिन्ता व्यक्ति की है और प्राकृतिक उपचार के लिए इन्हें भेजा है, ये दीपक भाई हैं, ये हीलिंग से उपचार करते हैं।* उन्होंने हीलिंग चिकित्सा की। बाद में उन्होंने बैग में से एक डिब्बी निकाली और आचार्यश्री जी से बोले गुरुदेव हमने एक चावल पर आपका चित्र बनाया है देखें दिखाया तो आचार्यश्री ने लेटे-लेटे ही देखा डिब्बी में ऊपर लेंस लगा था उसमें चावल दिख रहा था, आचार्यश्री जी ने उनकी खुशी के लिए व्यवहार का ध्यान रखते हुए वीतराग प्रसन्नता प्रकट कर दी। 

ब्र. विनय जी ने ठण्डी-गरम पट्टी करना चाही तो मना कर दिया, तभी वैद्य हंसराज जी (रायला वाले) आ गये बोले- *अन्नदाता ! मैं आपके चरणों में ढोक करूँ, म्हाने आशीर्वाद फरमाओ अन्नदाता।* आचार्यश्री ने बाँया हाथ उठा कर आशीर्वाद दिया। 

वैद्यजी: *धन्य हो गया ! मैं तो धन्य हो गया।* तभी आचार्यश्री को खुजली चली, तो वैद्य जी बोले- *अन्नदाता खुजली चल रही है?* 

आचार्यश्रीजी : *हूँ*  

गौरव शाह की ओर देखकर बोले एक छटाक सरसों का तेल, एक छटाक नारियल का तेल मिलाकर थोड़ी सी हल्दी डालकर फेंट दें फिर छानकर लगा दें, तो आराम हो जाएगा। व्यवस्था करके वैद्य जी को सौंप दिया, उन्होंने आचार्यश्री जी को लगाया। एक साइड लगाने के बाद बोले *“अन्नदाता करवट ले लें, तो बड़ी कृपा होगी,*  आचार्यश्री जी ने पिच्छी से परिमार्जन किया और करवट बदल ली, उस तरफ भी वैद्यजी ने लगा दिया। फिर बोले *“अन्नदाता अब बतायें कहाँ खुजली हो रही है, आराम लगा ना, अन्नदाता थोड़ा तो मुस्कराओ, आप तो तटस्थ भाव सूँ देख रहे हैं, आप प्रसन्न होंगे तो, हम सभी का खून बढ़ जावेगी, अन्नदाता! ये तो आप भी जानते हैं कि प्रसन्नता से सौ रोग दूर होते हैं, तब आचार्यश्री जी ने मन्द मुस्कान के साथ आँखें बंद रखकर' हूँ' कहा।* 

उसके बाद हीलिंग देने वालों ने हीलिंग दी, पूरे देशभर में जैन समाज में समाचार फैल जाने से सर्वत्र णमोकार मंत्र का पाठ, भक्तामर पाठ, जाप, पूजा विधान, शांतिधारा आदि अनुष्ठान होने के समाचार मिल रहे थे। गुरुदेव के शिष्य-शिष्यायें मंत्र जाप में दत्तचित्त थे किन्तु गुरुदेव का असाता कर्म नहीं पसीजा। 

९.३६ पर आहार प्रारम्भ हुआ और ९.४४ पर बंद हो गया। गुरुजी बैठ गए। बीच में दो बार कमजोरी के कारण बैठने जैसी स्थिति बनी किन्तु पैरों को पूज्य सागरजी एवं वैद्य गौरव शाह पकड़े हुए थे, निरामयसागरजी एवं निस्सीमसागरजी महाराज गुरुदेव के हाथ पकड़े हुए थे, तो अँजुलि खुल नहीं पाई। थोड़ा-थोड़ा जल लिया, फिर उनसे खड़े होते नहीं बन रहा था तो सिर हिलाकर मना कर दिया 

तब वैद्य जी बोले- *अन्नदाता थोड़ा और लीजिए, अन्नदाता प्रसन्न होवें, किन्तु आचार्यश्री सिर हिला मना करते रहे, खड़े होने की शक्ति नहीं होने के कारण, आगम ज्ञाता गुरुवर आगम की आज्ञा मानकर बैठ गए।* 

आचार्यश्री पीछे बाहर केनोपी में चले गये, धूप आ गई थी, सूरज सेवा करना कैसे भूल सकता है वो तो सतत् जागता रहता है, दुनिया की थकान मिटाने सबको सुलाने पश्चिम में चला जाता है किन्तु पुनः पूर्व से आकर जगा देता है। रातभर जागे गुरुदेव को गुनगुनी धूप देकर तन्द्रा के आगोश में विश्राम दिया। 

प्रतिक्रमण में आचार्यश्री जी बार-बार नमोऽस्तु करते रहे, कायोत्सर्ग में अँगुली चल रहीं थीं। अन्त में उठकर बैठे आशीर्वाद दिया, फिर शौच का इशारा देकर उठ खड़े हुए, किन्तु निवेदन पर वहीं पीछे पास में चले गये। थोड़ा सा मल हुआ। हाथ-पैर, मुँह अपने हाथ से धोए। कायोत्सर्ग किया। 

फिर आचार्यश्रीजी ने दिशा के बारे में पूछा, तो बताया ये उत्तर, ये दक्षिण, ये पूर्व, पश्चिम है ती गुरुदेव दक्षिण में पैर करके लेट गये, हम सभी ने कहा *ये दक्षिण है, आचार्यश्री इस तरफ सिर, यहाँ पैर करना है, तो कुछ बोले हम समझ नहीं पाये,*  क्योंकि बहुत धीरे बोले थे और सामायिक प्रारम्भ कर दी। तब वैद्य हंसराज चौधरी (रायला) की बात मेरे कानों में गूंजी उन्होंने कल शाम को आचार्यश्री की नाड़ी देखी थी और कहा था नाड़ी बहुत दुर्बल चल रही है। मन्द पड़ गई है। सम्भव है आचार्यश्री जी उनकी बात को मानकर अपने संकल्प को पूर्ण करने के लिए सावधानी बरत रहे हैं इसलिए दक्षिण में पैर कर लिए हों।* 

विनय जी आचार्यश्री जी को निवेदन कर रहे थे-आचार्यश्री जी जैसे पहले रामटेक, इन्दौर, खुई, कुण्डलपुर, अमरकण्टक में स्वास्थ्य गड़‌बड़ हुआ था तो क्षेत्र परिवर्तन से ठीक हो गया था तो यहाँ से क्षेत्र परिवर्तन करते हैं, स्वास्थ्य ठीक हो जाएगा। तब आचार्यश्री जी ने मना कर दिया। 

मैंने लगभग १ घण्टे वैयावृत्ति की, आचार्यश्री जी ने पौंछने का इशारा किया, सूखे कपड़े से हमने पूरा शरीर पौंछा। तब गुरुदेव के मुख से निकला *" स्वयं कृतं कर्म यदात्मना पुरा फलं त्वदीयं लभते शुभाशुभम्।"* 

आज बैचेनी में कमी नजर आई, खुजली में कमी नजर आई। संभवतः गुरुदेव सहन कर रहे हों। शाम ४ बजे गुरुदेव ने प्रतिक्रमण के लिए बोला तो कुछ मुनिराजों ने प्रतिक्रमण सुनाना प्रारम्भ कर दिया। फिर देवदर्शन के लिए उठे, चले, लड़खड़ाये, तो प्रसादसागरजी ने सहारा देना चाहा तो मना कर दिया, आगे बढ़े, तीन सीढ़ी चढ़े और गैलरी में उकरु बैठ गए, प्रसादसागरजी पीछे से पकड़े रहे। १ मिनट बाद उठे और चलने लगे, लड़खड़ाये तो पीछे से प्रसादसागर ने पकड़कर भगवान के सामने तखत पर बैठा दिया पैरों में चलने की शक्ति बहुत कम हो गई थी। 

*मुनि श्री निरामयसागरजी ने सुबह बताया कि रात्रि में २० बार उठे, कूल्हने की आवाज आती थी, तो हम उठकर पूछते आचार्यश्री क्या हो रहा है? गुरुदेव नींद नहीं आ रही है क्या? तो हाथ के इशारे से बताते वेदना हो रही है, मैं वैय्यावृत्त्य करने लग जाता, तो उनको हमारी चिन्ता लग जाती, तत्काल हाथ के इशारे से जाने का संकेत करते, रातभर आचार्यश्री की थोड़ी भी आँख नहीं लगी। रातभर बेचैनी के बावजूद मुँह से वैय्यावृत्त्य करने के लिए नहीं कहा और कोई भी विपरीत भाव मुँह से नहीं निकला। बड़ी ही निरीहता से असाता कर्मों को सहन करते रहे।*

✍️ *कृतिकार : एलक धैर्य सागरजी महाराज


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Milan Tomic

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